बिसरा साथी
कुछ और हमें अब याद नहीं
बातें सारी प्यार कि, वोह ही हमें अब याद नहीं
धड़कन तो है दिल की
धड़कते दिल की बाकी कोई भी फ़रियाद नहीं
कसमें वफ़ा की सब हैं याद उन्हें
कसर इतनी सी है बस वफ़ा ही याद नहीं
वे न भूल सके इश्क को हमारे
वक्त की धूल में उन्हें आश्की ही याद नहीं
एक मंजिल दोनों साथ चले
डगर है अब अकेली साथी कोई साथ नहीं
अश्कों से खूब भिगोया दामन
उनके उन अश्रों में प्यार की है आग नहीं
१९७५
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